पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुनी गईं कानपुर की बेटी प्रो. उषा यादव के लेखन में मायके (कानपुर) से ज्यादा ससुराल (आगरा) की छाप देखने को मिलती है। वह बताती हैं कि कानपुर के लोग, यहां की बातें और खूब सारी खट्टी-मीठी यादें उनके जेहन में रची-बसी हैं।
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